Monday 24 November 2014

उड़ान

वो फरिश्ता ही हैं कोई, जिसका हाथ थाम किया मैने आगाज़,
हर ओर खुलने लगे हैं, वो उलझे हुए से राज़,
एक नयी राह की ओर निकली हूँ ढूड़ने अपनी पहचान,
दबे हुए पंखों को फैला, भरने अपनी उड़ान.

गुज़रे वक़्त में, कदम-कदम मैं चलती थी मगर,
ज़िंदगी रुकी सी थी, थमा हुआ था हर सफ़र,
अजब सी थकन थी हर पल, थक गयी थी सिसकियाँ,
आँसू बन बह गया सब, रह गयी बस हिचकियाँ,
जैसे अंधेरे भरे एक कमरें में खुला हो एक रोशनदान,
एक नयी राह की ओर निकली हूँ ढूड़ने अपनी पहचान,
दबे हुए पंखों को फैला, भरने अपनी उड़ान.

अब जाके जाना, सीपों में छिपे मोतियों का राज़
बाँसुरी की खिड़कियाँ छेड़ने लगी हैं सुरीले साज़
भ्रम था वो, अफवाह को था सच मैने माना,
ख़ाता नही थी मेरी कोई, अब जाके मैने ये जाना
बिखरे तिनको को समेटे अब बन रहा हैं मेरा आशियाँ
एक नयी राह की ओर निकली हूँ ढूड़ने अपनी पहचान,
दबे हुए पंखों को फैला, भरने अपनी उड़ान.
अब ना रुकेंगे कदम, ना थामेगा यह कारवाँ
अब होगी मेरी सहर, छूना हैं अब आसमाँ
एक नयी राह की और निखली हूँ ढूड़ने अपनी पहचान,

दबे हुए पंखों को फैला भरने अपनी उड़ान.

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