Monday 4 April 2011

सूरज की पहली किरण


चुपके-चुपके घने बादलों के,
बीच राह बना निकल,
उतरी आँगन में देखो वो,
सूरज की वो पहली किरण |



धीमे-धीमे फिर सुनहेरा सा हुआ,
आँगन का हर एक कोना,
कुछ देर पहले जो था चांदी सा रोशन,
अब चमक रहा जैसे हो पिघला सोना |



चहक-चहक खुश हुए पंछी,
पंख फैलाये उड़ चले अपनी दिशा में,
महक-महक खिल यूँ उठे गुल,
नज़ाकत से अंगड़ाई भर फैलाई खुशबु फिजा में |



बंद झरोके से फिर दबे पांव,
बढ़ी किरण पर मुड़ी वहां,
पलकें मूँद कुछ आँखे,
एक सपना संजों रही थी जहाँ |



पास पहुँच उन आखों को,
यूँ नरमी से सहलाया,
कि बरसों खोये हुए सपनों को,
एक आशा का दीप हो दिखाया |