मेरी ख़ामोशी
की है वो
आवाज़,
बिखरे सुरों को
जोड़े जो साज़,
इश्क़ के
सवेरे से ना
अनजान हूँ मैं
अब,
जब से
बना वो इबादत
मेरी,
वो ही
हैं मज़हब अब
वो ही हैं
रब
हैरान हुई यह
निगाहें जब यह
समां देखा,
रोशन हुई
राहों पर चल
रहा कारवां देखा,
न जाने
हैं ये खुशनसीबी
या फकीरी,
पर अब
ज़िन्दगी हैं वो
मेरी,
दूर होके
भी लगे वो
हरदम है
पास,
मेरी हर
दुआ का असर
हैं वो, वो
ही हैं आस
अब जाना
मैंने उन ख्वाबों
का मतलब
जब से
बना वो इबादत
मेरी,
वो ही
हैं मज़हब अब
वो ही हैं
रब
रूह को मिला
सुकून हैं जैसे,
जैसे पूरी
हुई मेरी हर
मन्नत
वो हमनवां,
वो हैं हमसफ़र,
अब वो हैं जहाँ
हैं वही जन्नत
मेरी शोहरत,
मेरी दौलत,
मेरी बरकत,
मेरी इबादत
वो ही
है मज़हब अब
वो ही हैं
रब