Friday, 11 March 2011

भूली -बिसरी यादों की राहें

भूली -बिसरी यादों की राहों पर
जब मुड़े तो यूँ लगा जैसे
हर एक कदम कोई दास्ताँ
कह रहा हो जैसे....
कहीं ख़ुशी के अनगिनत रंगों से
सजी रंगोली दी दिखाई
तो किसी कोने में अनकहे लम्हों की
छाप छोड़ गयी गम की सियाही
फिर..
थोड़ी दूर कहीं दिखे कुछ सपने
तितर-बितर इधर-उधर बिखरे हुए
जब पहुंची नजदीक यूँ सिमट घेरा मुझे
मानो हर सपना सच होने की
ख्वाहिश  कर रहा हो जैसे….
भूली -बिसरी यादों की राहों पर
जब मुड़े तो यूँ लगा जैसे
हर एक कदम कोई दास्ताँ
कह रहा हो जैसे....
चाहत तो थी कि यादों के साए में गुम
हर अधूरे सपने को
नील गगन में तारों सा टिमटिमाते देखूं
पर सोचा...
ज़िन्दगी कि इस भागदौड़ में
छूटे-टूटे सपनो के लिए था वक़्त कहाँ
कहाँ थी फुर्सत उनको संजोकर, सहेज कर रखने कि
सोचते हुए महसूस हुई कुछ नमी सी आँखों में  
मानो हर अधुरा सपना आंसू बन
अलविदा कह गया हो जैसे ….
भूली -बिसरी यादों की राहों पर
जब मुड़े तो यूँ लगा जैसे
हर एक कदम कोई दास्ताँ
कह रहा हो जैसे....